Wada A Mystery - 1 in Hindi Fiction Stories by Deepak Pawar books and stories PDF | वाड़ा - एक रहस्य - 1

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वाड़ा - एक रहस्य - 1

काफी साल बीत गए थे ऋषिराज को अपने गाँव गए हुए बचपन से ही गाँव से दूर शहर में अपने माता पिता के साथ वह रहने लगा था ।पढ़ाई लिखाई भी यही पूरी की इतिहास में डिग्री ले कर अब काम तलाश रहा था ।पर सफलता अभी नही मिल सकी थी । 20 वर्षो बाद आज वह अपने गाँव चन्द्रनगर जा रहा है रिस्तेदार की एक शादी में बाराती बनकर । सभी बारातियो के साथ वह भी वाल्वो बस में बैठ गया था गाँव के रिस्तेदारों में उसके मामा के घर शादी थी और मामा जी काफी सम्पन्न घर से थे। इस लिए उन्होंने शहर में रहने वाले बड़े लड़के की शादी के लिए यह बस भेजी थी ।जिससे उनके लड़के अमित के शादी में सभी उसके दोस्त बाराती बनकर आ सके । ऋषिराज के मामा जी का लड़का अमित था और अचानक ही उसकी शादी की जा रही थी । अमित का शहर में काजल नाम की लड़की से प्रेम संबंध था जिसकी जानकारी मामाजी को लग गई थी और मामाजी पढ़े लिखे होने के साथ ही सम्पन्न घराने से होने की वजह से मामाजी के घर वालो ने भी अमित और काजल के घर जा कर यह रिश्ता तय कर जल्द शादी करने का फैसला किया था । नवम्बर का यह महीना था । ऋशिराज के माता पिता तो पहले ही गाँव जा चुके थे पर ऋषिराज पीछे अपने दोस्तों के साथ बस में गाँव की तरफ निकल रहा था बारातियों के साथ । लगातर कई सौ की मी रात भर बस चलती रही मज़ाक, मस्ती गाने बजाने के साथ अमित और ऋशिराज के दोस्त वाल्वो बस में धूम मचाते ठंडी हवाओं के बीच बस में शहर से बाहर निकल रहे थे । जल्द ही सुनसान पहाड़ियों के रास्ते शुरू हो गए अब रात भी आधे से ज्यादा कट गई थी और शहर से गाँव की दूरी भी आधी से ज्यादा कम हो गई थी । बस में बैठे आधे लोग अब मस्ति कर थक कर नीद अपनी सीट पर सो रहे थे तो अभी भी कुछ लोग मोबाइल पर वाट्सऐप चैटिंग कर रहे थे । ऋशिराज ने खिड़की को थोड़ा सा खोला तो बाहर की ठंडी हवा का तेज अहसास उसे तुरंत ही होने लगा मानो यह तेज हवा उसे कुछ बताने की कोशिश कर रही है । तुरंत ही ऋशिराज ने खिड़की बंद कर दी और अपना जैकेट की जेब से सिगरेट का पैकेट निकाल कर उसमें से एक सिगरेट निकाल कर सुलगा ली और कश लेने लगा ।कुछ देर यू ही सिलसिला चला और ऋशिराज को भी नींद घेरने लगी जिससे अब वह भी आँखे बंद कर अपनी सीट पर नींद लेने लगा । सुबह हो चुकी थी वाल्वो बस अब चन्द्रनगर में पहुँच गई थी बस के ब्रेक लगते ही अंदर सो रहे कुछ लोगो के साथ ऋशिराज भी उठ जाता है और आलस देते हुए बस की खिड़की से बाहर झांकने लगता है उसे मामा का यह गाँव दिखाई देता है ,जहां कुछ लोग बारातियों को लेने आये थे । जिनमें मामा के लोग सभी बारातियो का सामान ले कर बारातियों के रुकने वाली जगह की तरफ ले जा रहे थे अब ऋशिराज बस से उतरता है और अपनी छोटी सी बेग को पीठ पर लटकाकर बारातियों के साथ जाने की बजाय सीधे मामा के बड़े से सुंदर घर की तरफ जहां मंडप लगा था वहां निकल जाता है । गाँव के पतली सकरी गलियों में वह पुराने मिट्टी के घरों की गलियों से जाते हुए अपने बचपन को भी बहौत याद करता है कि कैसे मामाजी के घर वह महीनों रहा करता था । शहर जाने के बाद वर्षो बाद वह यहां आया था । मामाजी के घर के नजदीक पहुँचकर वह एक पेड़ को देखने लगता है और मामाजी के घर से गाँव से थोड़ी ही दूर खेत मे एक उचाई पर उसे वह वाड़ा भी दिखाई देता है पर ना जाने क्यों वाड़ा उसे आज पहले से अलग दिखाई देता है उसे काफी आकर्षित करता है वह एक टक वाड़े को देखने लगता है कि तभी वहां मामाजी का छोटा लड़का अजय आकर उसे आवाज देता है । अर्रे...भाई वहां नही यहां है घर ...भूल गए क्या ? उसकी आवाज़ पर ऋशिराज उसे कहता है अजय ब्रो भुला नही..आ ही रहा हु पर ..इतने वर्षों बाद देख रहा हु की मामा का गाँव बदला है या नही...है अजय अब नजदीक आकर उसका बैग अपने पास लेकर कहता है जैसा था वैसा ही है ...बस गाँव वाले बदल गए है ..पढ़ाई कर कर के ...जैसे कि तुम बदल गए । दोनो बाते करते हुए अब मामाजी के घर की तरफ चलने लगे थे बीच मे ही ऋशिराज ने अजय से पूछ लिया -अजय वो खेत वाला वाड़ा काफी बदल गया है ,पहले जैसा नही रहा अजय चलते हुए उसे जवाब देता है - हा उसकी अभी एक दीवाल बरसात में आधी गिर गई है । पर घर वालो ने वाड़े के आसपास रास्ता बंद कर दिया है कहते है कि किसी को भी अब वहां नही जाने देना है । उसकी बात खत्म होती उसके पहले ही दोनो घर के दरवाजे के अंदर दाखिल हो चुके थे ऋशिराज कि मामीजी ने दोनो को देखा और ऋशिराज के पास दौड़कर आ गई काफी समय के बाद ऋशिराज जो मामाजी के घर आया था ।

दूसरे दिन हल्दी की रस्म काफी देर रात चली औऱ सभी लोगो ने खूब हल्दी खेली लड़की के परिवार औऱ लड़के के परिवार ने रस्म पूरी की जिसके बाद खाना खाने का सिलसिला शुरू हुआ था जहां सभी बाराती खाना खाने बैठे जिसमे ऋशिराज ,और मामाजी का बेटा सबको खाना परोसने का काम कर रहै थे । इस खाने की लाइन में एक बुजुर्ग भी बैठे थे करीब 80 वर्ष के आसपास उनकी उम्र चेहरे पर सफेद गले तक लगी दाढ़ी और बड़ी मुछे चेहरा चोरस लंबा बाल भी आधे से ज्यादा सर पर सफ़ेद जो लबे गर्दन तक थे सफेद कपड़ो वह एक गमछा अपने कंधे पर सफेद कपड़ा रखकर खाने की पंगत में बैठने के बावजूद सबसे अलग ही दिखाई दे रहे थे ।ऋशिराज की नज़र गई तो वह वहां खाने का सामान ले कर उनके पास गया और उन्हें कहा -

दादाजी आपको कुछ चाहिए…

सामने बैठे उस व्यक्ति ने सिर्फ ऋशिराज की तरफ शांत नजरो से देखा और बिना कहे ही एक पूरी अपने हाथसँ के ऋशिराज के हाथ मे रखे ट्रे से ले ली पर उनके इस तरह लेते समय ऋशिराज की नजर उनके हाथ पर गई औऱ वह हैरान था । इस बुजुर्ग दादाजी ने तो बड़े बड़े सोने के हाथों में ब्रेसलेट के मोटे पुराने जमाने के गहने पहन रखे थे,उंगलियों में सोने की अंगूठी में मोती जानो की बुजुर्ग कोई राजा महाराजा के खानदान से हो ।

तभी उसके पीछे से आवाज़ आती है - भाई हमको भी दो चार पाँच पूरी दे दो और ऋशिराज पलट कर पीछे देखता है एक बाराती पूरी के लिए इशारा कर रहा था ऋशिराज उसे आने का इशारा कर फिर उसी बुजुर्ग दादाजी की तरफ पलटता है और एकदम से हैरान हो जाता है जहां वह बैठा था बुजुर्ग वहां अब कोई नही था वह जगह खाली थी,वहां ना ग्लास ओर नही खाने की कोई थाली या अन्य कोई निशान तक नही था ।ऋशिराज आसपास नजर दौड़ाता है बुजुर्ग को देखने के लिए पर वह बुजुर्ग उसे कही दिखाई नही देता ।

क्रमशः